हरियाणा में गोपाल कांडा को लेकर हुए सियासी उलटफेर में चौंकाने वाली खबर सामने आई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहन बड़ौली का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि सिरसा सीट से उनके उम्मीदवार ने नाम वापस ले लिया। उन्होंने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा को बुलाया है। उससे इस बारे में पूछा जाएगा।
बड़ौली मंगलवार को रोहतक में पत्रकारों से बात कर रहे थे। बड़ौली ने यह भी दावा किया कि सिरसा में भाजपा ने गोपाल कांडा को कोई समर्थन नहीं दिया है। हालांकि सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़ चुके भाजपा नेता व पूर्व सांसद अशोक तंवर के कांडा को समर्थन के बयान पर बड़ौली ने चुप्पी साध ली।
वहीं जिन उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा को भाजपा अध्यक्ष तलब करने की बात कह रहे हैं, वे हिसार में CM नायब सैनी के साथ रैली में मंच पर बैठे नजर आए। इस दौरान वह सीएम के बगल में बैठकर उनसे बातचीत करते नजर आए।
वहीं भाजपा के उम्मीदवार हटाने के बाद पिछले 3 विधानसभा चुनाव में यह पहली बार है, जब भाजपा 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सिरसा से पीछे हटने के भाजपा के अचानक लिए गए फैसले से हर कोई हैरान है। एक दिन पहले खुद को नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस (NDA) का हिस्सा बताने वाले गोपाल कांडा भी भाजपा के इस कदम से हैरान हैं।
जहां गोपाल कांडा 2 दिन पहले तक यह कहते नहीं थक रहे थे कि आने वाली सरकार भाजपा की होगी और हम उसके साथ समझौता करेंगे। वहीं, कल कांडा यह कहते नजर आए थे कि सिरसा की जनता कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही परेशान हो चुकी है।
वह ऐसी पार्टी को जिताना चाहती है जो सिरसा में राज ला सके। कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा ने सिरसा सीट पर डमी कैंडिडेट इसलिए उतारा है, ताकि कांडा की मदद की जा सके, लेकिन अचानक नामांकन वापसी के ठीक 2 दिन पहले भाजपा कांडा के लिए दोबारा एक्टिव हो गई और सोमवार को सिरसा सीट से अपने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापस ले लिया।
कांडा को समर्थन देने की भाजपा की 3 वजहें
कांग्रेस : भाजपा नहीं चाहती कि सिरसा सीट कांग्रेस जीते। भाजपा हर सीट को खास मानकर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान सिरसा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था। इसलिए, भाजपा नहीं चाहती कि सीट पर कांग्रेस विरोधी वोट बंटे।
कंडीशन : गोकुल सेतिया की उम्मीदवारी से कांग्रेस की राह आसान होती दिख रही है। अचानक कांग्रेस से बागी हुए नेता भी गोकुल का समर्थन करते नजर आए। इससे भाजपा एक्टिव हो गई।
कांडा : कांडा के लिए मुकाबला टफ हो गया है। भाजपा जानती है कि सिरसा सीट कांडा ही निकाल सकते हैं। उनके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं जो कांडा से बड़ा हो। कांडा सिरसा बेल्ट में प्रभावशाली नेता हैं। लोकसभा चुनाव में कांडा ने भाजपा की मदद भी की थी।
कांडा के इकरार से इनकार तक की वजह
इनेलो-बसपा गठबंधन : भाजपा ने नामांकन प्रक्रिया के शुरू होने के एक दिन पहले तक कांडा से गठबंधन पर कोई फैसला नहीं लिया गया। कांडा ने 12 सितंबर को इनेलो और बसपा से गठबंधन कर लिया। बसपा और इनेलो भाजपा के खिलाफ हैं।
भाजपा-कांग्रेस विरोधी वोट मिलें : शुरुआत से ही भाजपा का समर्थन लेने से पार्टी विरोधी वोट कांग्रेस में शिफ्ट होने का डर है। ऐसे में कांडा के कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ रहने से दोनों से नाराज हुआ वोटर कांडा के समर्थन में आ सकता है।
भाजपा वोटर के पास विकल्प नहीं : कांडा जानते हैं कि भाजपा के वोटरों के पास अब उन्हें वोट डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। भाजपा का वोटर कभी कांग्रेस को वोट नहीं देगा। ऐसे में कांडा ही इकलौते हैं, जिन्हें भाजपा का भी वोट मिल सकता है।
इनेलो इसलिए कांडा-भाजपा के समर्थन के खिलाफ हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए कांडा की भाजपा से दूरी जरूरी है। कांडा का इनेलो-बसपा से गठबंधन है। इससे उनके गठबंधन पर असर पड़ सकता है। साथ ही प्रदेश में इस समय इनेलो की स्थिति बेहतर हुई है, लेकिन एक सीट के कारण पूरे प्रदेश में इसका नेगिटिव असर हो सकता है।
कांग्रेस इलेक्शन कैंपेन में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता विरोधी वोट बटोर सकती है। कांडा को साथ रखने से इनेलो ऐलनाबाद, रानिया और डबवाली तीनों जगहों पर बढ़त मानकर चल रही है।